कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली में उच्चकोटि के नर के वीर्य को संचित करके प्रयोगशाला में पूर्णरूप से जाँच व परख के बाद तरल नाईट्रोजन में हिमकृत रूप में संरक्षित किया जाता है जब मादा पशु गर्मी में आती है तब उस हिमकृत वीर्य को तरल अवस्था में लगाकर गर्भाधान यन्त्र द्वारा मादा की जननेन्द्रिय में सेचित किया जाता है। गर्भाधान की यह विधि एक वैज्ञानिक तकनीक है। पशुधान के विकास हेतु अब तक इस विधि से अच्छी कोई अन्य तकनीक नहीं है । वास्तव में नस्ल सुधार हेतू इस अति उपयोगी वैज्ञानिक निधि का कोई विकल्प नहीं है।
कृत्रिम गर्भाधान विधि का विकास होने के साथ, झोटे/साण्ड रखने की जरूरत नहीं होती। झोटे/साण्ड की प्रोजनी टैस्टिंग केवल कृत्रिम गर्भाधान द्वारा ही संभव है जिससे झोटे/साण्ड की गुणवत्ता की जांच कर सकते हैं।
कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्त्ता का प्रशिक्षण केवल प्रमाणित सस्थान से ही करें क्योंकि भारत सरकार के कृषि मंत्रालय डेयरिंग एवं मत्यस्य विभाग से प्रमाणित पशुपालन, संस्थान ही ये कोर्स करवा सकते है। भारत का एक संस्थान HB कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण संस्थान के नाम से स्थित है। जहाँ 90 दिन की प्रेक्टिकल ट्रेनिंग दी जाती है।
कृत्रिम गर्भाधान हमेशा केवल प्रमाणित प्रशिक्षित कत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता (MAITRI Multipurpose Artificial Inseminator Technician for Rural India) से ही करवाऐं क्योंकि भारत सरकार की राष्ट्रीय पशु धन नीति 2013 के तहत कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता का प्रमाणित होना आवश्यक है।.
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